बिहार में बड़ी अजीब सी स्थिति बनी हुई है, पर कब से, पिछले 30 सालों से। बिहार की हर सरकार सिर्फ अपना और अपने मंत्रियों का खजाना भड़ने में ही लगी रहती है। उनको राज्य की जनता से कोई मतलब नहीं रहता है। पर जनता वोट जरूर देती है भले ही उनका कोई भला ना हो। चलिए आज बात करते है २ मुलभुत जरूरतों की जिसका बंटाधार हुआ पड़ा है:
1. शिक्षा
2. रोजगार
अब आप लोग कहेंगे की इसमें क्या बुराई है। शिक्षा हमें लेनी नहीं है और रोजगार हमे मिलने वाला नहीं है।
सबसे पहले बात करते है शिक्षा की। बिहार में शिक्षा व्यवस्था का जो मजाक उड़ाया जा रहा है वैसा मैंने और कहीं नहीं देखा है। यहाँ पर हम पहले ये बता दे, की ना तो हम लालू जी के फैन है और ना ही नितीश जी के। बस जो चल रहा था और जो चल रहा है उसको समझाने की कोसिस कर रहे है। लालू जी के सरकार में 2 चीज़ें अच्छी थी। एक तो सामाजिक उत्थान के लिए जो उन्होंने किए वो सच में कबीले तारीफ था। उन्होंने निचे के तबके को सब के साथ ला कर बिठाया जो एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। दूसरा की उस समय अध्यापकों की भर्ती प्रतियोगी परीक्षा के आधार पर होती थी। जो की हर मायने में सही था। सबको मौका मिलना चाहिए, चाहे उसके नंबर 90% हों या 50% ही क्यों ना हो। अब सायद आप इशारा समझ गए होंगे। जिस समय हम अपने गांव में पढ़ते थे, उस समय ना तो अध्यापकों की कमी थी और ना ही उनके गुणवत्ता की। क्योंकि वो सब प्रतियोगी परीक्षा पास कर के आते थे। और अगर अभी के बच्चे को पता लग जाए की कैसे पहले स्कूलों में पढाई होती थी और अब कैसे होता है तो उनको अपने सरकार से नफरत हो जाएगी। पर क्या करें हमारे पास उस समय स्मार्टफोन नहीं था, नहीं तो रिकॉर्डिंग कर लेते। मैंने वैसे जुनूनी और विद्वान अध्यापक किसी स्कूल में आज तक नहीं देखा। चाहे किसी भी विषय के अध्यापक हो सब अपने विषय में निपुण थे। बहुत कम ही ऐसे अध्यापक थे जो कभी किताब देख के पढ़ाते थे। उनको पता होता था की क्या पढ़ाना है और कैसे पढ़ाना है। एक भूगोल के अध्यापक थे, जो ऐसे बोलते और समझाते थे जैसे अटल बिहारी वाजपेई बोल रहें है। वो कोई कॉमेडियन नहीं थे, उन्होंने टीचर बनने की बहुत अच्छे तरीके से प्रशिक्षण लिया था। मैंने कहीं पढ़ा था की अगर आपको बच्चों को अपने आप से बहुत देर तक जोड़े रखना है तो आपको वो सब कुछ करना पड़ेगा जिससे बच्चे का मन पढाई में लगा रहे, चाहे इसके लिए आपको किसी की नक़ल ही क्यों न करनी पड़े। भूगोल जैसे विषय को कौन अध्यापक इतने सरस और मनोरंजन के साथ पढ़ा सकता है। वही पढ़ा सकता है जिसके अंदर गुणवत्ता की कोई कमी ना हो। चाहे आप कोई भी विषय ले लीजिए गणित, हिंदी, संस्कृत कोई भी, सबके अध्यापक बहुत विद्वान थे। उन्होंने वही किया जो एक अच्छे अध्यपक को करना चाहिए। अब बात करते है अभी के बारे में। नितीश जी ने अध्यापकों की भर्ती शुरू की उनके मार्क्स देख के। ये कोई मज़ाक है क्या, आप वहां मार्क्स का फार्मूला लगा रहे हो, जहाँ मार्क्स पैसे से ख़रीदे जाते है। ये कोई मजाक है क्या, आप उनलोगों को अध्यापक बना रहें हैं जिनके मार्कशीट पे जायदा नंबर चढ़े है। ये कोई मजाक है क्या, आप उनलोगों के हाथ में अपने राज्य के बच्चों का भविस्य दे रहे हैं जिनके मार्कशीट पे नंबर जायदा है। ये मज़ाक नहीं है तो और क्या है। इन भार्तिओं के बाद हमने ऐसे ऐसे अध्यापकों को देखा है जिनके हाथ कांपते थे अपना नाम तक लिखने में। तो कोई अध्यापक १० साल से अपना किराना दुकान चला रहा था जिसे पढाई लिखाई से दूर दूर तक कोई सम्बन्ध नहीं था। ये मजाक नहीं है तो और क्या है, आपने वोट के लिए अपने राज्य के बच्चों के भविस्य के साथ कितना बड़ा खिलवाड़ किया है। जो भी लोग इन भर्तियों से अध्यापक बन गए है उनको ये सब बात बहुत बुरी लग रही होगी। पर एक बार आप लोग ठन्डे दिमाग से सोचिए, आप वो नौकरी कर रहें हैं जिसपे आपके बच्चों का हक़ था। आज आपको सरकार पैसा दे रही है आप खुश हैं। पर जरा अपने दिल पे हाथ रख के देखिए क्या ये सही है। कल आपके ही घर के बच्चे ऐसे अध्यापकों से पढ़ेंगे और इस दुनिया की भागम भाग में बहुत पीछे छूट जाएंगे, क्योंकि उनको कोई बढ़िया अध्यापक नहीं मिलेगा पढ़ाने के लिए। जब तक बच्चा स्कूल में रहता है तब तक उसको सबसे अच्छा पढाई मिलना चाहिए। बच्चों का बुनियादी ज्ञान हमेशा मजबूत होना चाहिए। आप अभी के कमाई के चक्कर में अपने बच्चों के भविस्य से खिलवाड़ कर रहे हैं। खैर अब आगे आपकी समझदारी है, आप इसको कैसे समझते है।
अब बात करते है रोजगार की, पिछले 30 सालों में बिहार में एक भी बड़ी कंपनी नहीं है, सब से पूछो तो यही बोलते हैं की बिहार में बिज़नेस करना बहुत मुश्किल है। इसमें लालू जी की सरकार हो या नितीश जी की दोनों ने कुछ नहीं किया अभी तक। दोनों सरकार बिहार के इस जर्जर स्तिथि के लिए जिम्मेदार है। आपके यहाँ बिज़नेस करने से लोग डरते है की कहीं दिन दहाड़े उनकी हत्या ना हो जाए, कही कोई फिरौती ना मांग ले। आपके यहाँ से लोगों का पलायन होता है फिर भी आपको शर्म नहीं आती है वोट मांगने में। बिहार के 21-22 लाख लोग ऐसे है या इससे कही जायदा ही है, जो बिहार से बाहर रह के काम करते हैं और अपने पैतृक घर से दूर हो चुके हैं। अभी जो कोरोना का प्रकोप हुआ है उसमे सबसे निःसहाय और मजबूर बिहार के लोग दिख रहें हैं, क्योंकि उनकी चुनी हुई सरकार ने कहा है की बिहार में 21 लाख बिहारियों को लाना मुश्किल हैं। कभी आप बोलते हैं की बिहार में चमकी भुखार का कोई इलाज नहीं है जिससे कितने सारे बच्चे हर साल मरते हैं। कभी आप कहते हैं बाढ़ पर काबू पाना मुश्किल है, जिससे ना जाने कितने लोग हर साल मरते है और बेघर हो जाते है। आपके लिए युवाओं को रोजगार देना मुश्किल है। आपको कोटा में फंसे छात्र को वापस लाना मुश्किल है तो आप सरकार में क्या कर रहे है भाई, आपका काम तो विपक्ष का होना चाहिए ना जो हर बात पे निःसहाय दिखती है। आपके लिए कौन सा काम है जो बहुत आसान है।
आपने बिहार के लोगों का पलायन रोकने के लिए कुछ नहीं किया अभी तक, क्योंकि आपको सिर्फ अपना वोट बैंक याद रहता है। क्यों लोगों को ऐसा लगता है की अच्छा चूनाव आने वाला है अब लगता है टीचर की भर्ती बम्पर निकलेगी। क्यों लोगों को चुनाव तक का इंतज़ार करवाते है आप। खैर ये कहानी पुरे भारत वर्ष की है। जो रोड 4 साल तक जर्जर स्तिथि में होती है वो चुनाव के साल अपने आप बन जाती है। हर चुनाव के 6 महीने बाद टूट भी जाती है। अब तो नेताजी के काम करने का तरीका सबको पता चल गया है, पर नेताजी समझते हैं की जनता बुरबक हैं। अरे नेताजी ये पब्लिक है सब जानती है, पर कोई बोलने की हिम्मत नहीं कर पता है। क्या पता कब कोई किसी नेताजी को पसंद आ जाए और फिर गायब ही हो जाए। सब अपनी रोजी रोटी में लगे रहते है। किसी के पास टाइम नहीं रहता है ये सब बोलने या लिखने को। मेरे पास भी नहीं है, आज थोड़ा टाइम मिला तो लिख दिए। देखते है कितने लोग बुरा मानते है। वैसे ये बुरा मानने वाली बात नहीं है बस सच्चाई है जो हर कोई जानता है पर बोलता नहीं हैं। मेरा दिमाग घुमा मैंने बोल दिया। हाँ वैसे सच्चाई तो कड़वी होती ही हैं।
Source: https://leaderdesk.in/how-good-is-education-and-employment-in-bihar
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